असुर कलि - हिंदू पौराणिक कथाओं पर आधारित एक रोचक यात्रा

हिंदू साहित्य और पौराणिक कथाओं की विशाल संपत्ति हमारे देश की संस्कृति और इतिहास के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। यहां एक बड़ी संख्या में देवी-देवताओं, राक्षसों, यक्षों और अन्य शक्तिशाली प्राणियों की कथाएं हैं, जो हमें आदिकाल से ही प्रभावित करती आई हैं। हमारी पौराणिक कथाओं ने हमें अपने मूल्यों, धार्मिक तत्वों और मानवीय मूल्यों की एक महत्वपूर्ण पहचान दिलाई है।

असुर कलि
असुर कलि

वर्तमान की डिजिटल युग में हमारी एक्साइटमेंट और मनोरंजन की जगह वेब सीरीज़ ने बना ली है। हमारे अनदेखे हिस्सों में आजकल वेब सीरीज़ का महत्वपूर्ण स्थान हो गया है और इसमें से एक ऐसी श्रृंखला है "असुर"। यह श्रृंखला अपनी अद्वितीय प्लॉट लाइन, रहस्यमय वातावरण और उच्च-गुणवत्ता के किरदारों से भरपूर है। "असुर" वेब सीरीज़ के जरिए हमें एक अनोखी कथा सुनाती है, जहां अत्याधुनिक तकनीक के साथ हिन्दू पौराणिक कथाओं का महामंगल युगयात्रा किया जाता है। इस श्रृंखला में कलयुग के असुर कलि के बारे बताया गया है।  आइये आज हम असुर कलि के बारे में जाने,आज हम जानेंगे की कलि कौन है और कैसे एक  असुर धरती पर पुरे एक काल के लिए राज कर रहा है, उसका जन्म कैसे हुआ ? और वो दुनिया में कैसे अवतरीत होगा ?  

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धरती पर जब कभी भी बुराई बढ़ती है, या जब कभी भी अधर्म बढ़ता है तो श्री विष्णु धरती पर अवतार लेते हैं अधर्म के सर्वनाश के लिए। पुराणों के अनुसर कलयुग के अंत के लिए भगवान विष्णु कल्कि के रूप में आएंगे या राक्षस कली का अंत कर नए युग की शुरुआत करेंगे। अवतार कल्कि दुनिया के सबसे बड़े योद्धा होंगे जोकी भगवान विष्णु का 10वां अवतार होंगे।

आज से कई साल पहले जब सृष्टि का निर्माण नहीं हुआ था तब एक बार की बात है देवो के राजा इंद्रदेव एक  राक्षस के युद्ध कर रहे और उन्होंने उस असुर को हरा दिया  जिसके बाद चारो और उनकी प्रशंसा होने लगी। इंद्रदेव भी अपनी जीत से काफी प्रफुल्लित थे और अपने हाथी पर बैठ के स्वर्ग की और जाने लगे, तभी दुर्वाशा ऋषि इंद्रदेव को बधाई देने एक माला लेकर पहचे, उस समय इंद्रा अपनी जीत के हर्ष में डूबे हुए थे  और उन्हें कुछ समझ नही आ रहा था। वो बस अपनी जीत पर अहंकार हो रहा था। दुर्वाशा ऋषि उन्हें माला धारण कर प्रस्थान कर जाते हैं, और इंद्रदेव वो माला पहने स्वर्ग चले गए। और स्वर्ग में सभा का आयोजन करते हैं | उस सभा में दुर्वाशा ऋषि भी पहुचते हैं और देखते हैं कि जो माला उन्होंने इंद्र को पहनाई थी वो  इंद्र ने उनके हाथी को पहना दी थी जहा से वह से वो माला गिरके हाथी के पैरों में गिर गई थी | ये देख कर ऋषि को बहुत क्रोध आता है या वो इंद्र को श्राप देते हैं कि जिस पद या शक्ति का उसे इतना घमंड है वो उससे छिन जाएगा, उसका मान सम्मान जल्द ही खत्म हो जाएगा।

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कुछ ही दिनों में ऋषि के श्राप का असर दिखने लगता है। असुरो का साम्राज्य बढ़ता जाता है और इंद्रदेव का सिंघासन छिनने की नौबत में आ जाता है। इंद्रदेव और  बाकी सारे देवता बैकुंठ जाते हैं श्री विष्णु के पास, और उन्हें सारी व्यथा बताते हैं। भगवान विष्णु ने उन्हें कहा कि इस परिस्थति से बचने के लिए उन्हें समुद्र मंथन कर अमृत लाना होगा ताकि वो अमर हो सके और इंद्र अपना सिंघासन बचा सके। लेकिन मंथन सिर्फ देवताओ द्वारा संभव नहीं था इसीलिये उन्हें विष्णु ने कहा कि वो असुरों को भी मनाये  मंथन करने के लिए।

देवता असुरों को मानने के लिए असुरों के राजा बलि के पास पहुचते हैं और गुरु शुक्राचार्य के कहने पर बलि मान जाते हैं। सारे देवो ने विष्णु के कहे अनुसार तैयारी शुरू कर दी। भगवान गरुड़ अपनी चोंच में उठार मदार पर्वत लाए और वासुकी नाग को रस्सी की तरह प्रयोग किया गया।

असुर कलि
 समुन्द्र मंथन करते  हुए देवता और असुर  

फिर सारे देवता और असुर समुद्र मंथन करते हैं जिसके फलस्वरूप 14 रत्न, कामधेनु गाय, पारिजात वृक्ष और अन्य चीज़े मिली। साथ ही विष भी निकला जो कि अत्यंत ख़तरनाक था, हर कोई परेशान हो गया कि विष का क्या किया जाए तभी प्रभु शिव ने विष के पात्र से सारा विष पी लिया और देवी पार्वती ने सारा विष उनके गले में रोक दिया। जब प्रभु शिव विष पी रहे थे तभी कुछ बूंदे राक्षस अधर्म के पोते कली के ऊपर जा गिरा जिसके कारन उसका भौतिक स्वरूप नष्ट हो गया। अधर्म को बहुत क्रोध आया। और वो सही समय का इंतजार करने लगे जब मंथन से अमृत निकला तब उसकी भी कुछ बूंदे जाकर क्षीर सागर में मिल गई..इसी समय अधर्म  ने छल कर कुछ बूंदे कलि के आतंरिक स्वरुप को पिला दिया जिससे वो अमर हो गया।

इसके बाद कली समय पर संसार में यहां से वहां से छुपा रहा क्योंकि सतयुग में वो बाहर नहीं आ स्कता था ठीक इसी प्रकार त्रेतायुग राम साम्राज्य में या द्वापरयुग में कृष्ण के साम्राज्य में भी वो बाहर नहीं आ सकता था।

फिर द्वापरयुग अपने अंत पर तब अर्जुन के पोते राजा परीक्षित का साम्राज्य पूरे धरती पर था कलि चरवाहे के रूप में बाहर आया। तभी धरती माता गाय बनकर भ्रमन कर रही थी। कि तभी कली आकार उन्हें मारने लगी उसी समय राजा परीक्षित वहां से गुज़र रहे थे जब उन्हें देखा कि कोई चरवाहा गाय को मार रहा है तो वो पास पहुचे और वो समझ गए कि ये गाये धरती माता है और  ये चरवाहा कलि है।राजा परीक्षित क्रोध में अपना तलवार निकालते  है कि तभी  कलि अपने असली रूप में आ जाता है। वो परीक्षित के कदमो में गिर कर बोलता है की मुझे मत मारो मैं  कलि हूं और अब ये मेरा युग है भी आप मुझे मार नहीं सकते। राजा परीक्षित कहते हैं कि मुझे पता है कि असुर  कलि है और तेरे वजह से ही संसार में इतनी बुराई है। इसीलिए मैं नहीं चाहता कि तू यहां प्रवेश करे। मेरे रहते तू कभी नहीं आ सकता इसीलिये वापस चला जा। इस पर काली कहता की ऐसा तो नहीं हो सकता जब ये मेरा युग है तो यहां तो बस मुझे ही होना चाहिए। फिर राजा परीक्षित बोलते हैं कि चल अगर तु इतना बोल ही रहा है तो तुम्हारा निवास सोने में होगा बस! मतलब जहा कहीं भी सोना होगा वहां तेरा साम्राज्य होगा।

फिर द्वापरयुग अपने अंत पर तब अर्जुन के पोते राजा परीक्षित का साम्राज्य पूरे धरती पर था कलि चरवाहे के रूप में बाहर आया। तभी धरती माता गाय बनकर भ्रमन कर रही थी। कि तभी कली आकार उन्हें मारने लगी उसी समय राजा परीक्षित वहां से गुज़र रहे थे जब उन्हें देखा कि कोई चरवाहा गाय को मार रहा है तो वो पास पहुचे और वो समझ गए कि ये गाये धरती माता है और  ये चरवाहा कलि है।राजा परीक्षित क्रोध में अपना तलवार निकालते  है कि तभी  कलि अपने असली रूप में आ जाता है। वो परीक्षित के कदमो में गिर कर बोलता है की मुझे मत मारो मैं  कलि हूं और अब ये मेरा युग है भी आप मुझे मार नहीं सकते। राजा परीक्षित कहते हैं कि मुझे पता है कि असुर  कलि है और तेरे वजह से ही संसार में इतनी बुराई है। इसीलिए मैं नहीं चाहता कि तू यहां प्रवेश करे। मेरे रहते तू कभी नहीं आ सकता इसीलिये वापस चला जा। इस पर काली कहता की ऐसा तो नहीं हो सकता जब ये मेरा युग है तो यहां तो बस मुझे ही होना चाहिए। फिर राजा परीक्षित बोलते हैं कि चल अगर तु इतना बोल ही रहा है तो तुम्हारा निवास सोने में होगा बस! मतलब जहा कहीं भी सोना होगा वहां तेरा साम्राज्य होगा।

इतना कहते ही कलि राजा के मुकुट में प्रवेश कर गया क्योंकि राजा ने भी सोने का मुकुट ही धारण किया हुआ था। और राजा के मस्तिष्क को नियंत्रित करने लगा। कलि का लक्ष्य था कि राजा परीक्षित का अंत हो जाए ताकि  उसके युग "कलयुग" की शुरुआत हो जाए। इसलिए जब राजा थोड़ा आगे बढ़े तब उन्हें जंगल में बहुत जोर की प्यास लगी, उन्हें एक महर्षि की कुटिया दिखी। वह जाकर उन्हें महर्षि तपस्या में लिन दिखे, क्योंकि राजा के सर पर कलि सवार था तो उन्हें क्रोध आ गया. क्योंकि क्रोध पर कलि का साम्राज्य था..क्रोध आते ही राजा ने एक मरा हुआ सांप ऋषि के गले में डाल दिया। उनको ऐसा करते देख महर्षि के पुत्र को अत्याधिक गुस्सा आ गया और उन्होंने राजा को अपने पिता का अपमान करने के लिए श्राप दिया कि ठीक 7 दिनों के बाद उन्हें तक्षक नाग डस लेगा। या हम नाग के डसने के वजह से ही परीक्षित की मृत्यु होगी। जब राजा अपने महल पहुंचे और उन्होंने अपना मुकुट उतारा तब उन्हें लगा कि अभी उनके साथ क्या हुआ है, उन्हें काफी पछतावा हुआ। उधर जब महर्षि की आंख खुली तब उन्हें सारी बात पता चली या उन्हें भी अपने बेटे को बताया की राजा परीक्षित ने ऐसा कलि  के छल के कारन किया था, उन्हें राजा को श्राप नहीं देना चाहिए था। मुनि राजा के पास गए और उन्हें कहा की अब तो श्राप का तोड़ नहीं हो सकता इसीलिये वो अब स्वर्ग में अपने स्थान बनाएं। फिर ठीक 7 दिनों के बाद राजा परीक्षित की मृत्यु हो जाती है।

असुर कलि
कल्कि अवतार

 इसी प्रकार द्वापरयुग की समाप्ति होती है और कलयुग की शुरुआत। वेदो में लिखा गया है कि कलयुग में कली जिसके पास अबतक अपना कोई भौतिक अवतार नहीं है। वो एक रूप में जन्म लेगा जोकि अत्यंत शक्तिशाली होगा और बुराइयों को चरम सीमा तक ले जाएगा। लोग पूरी तरह से उसे ही अपना भगवान मानने लगेंगे और आपस में लड़ेंगे, एक दूसरे को काटेंगे। इंसानियत को छोड़ इंसान बुराइयों को अपना धर्म मानने लगेंगे। फिर कली के विनाश के लिए कल्कि का अवतार होगा जो बुराइयों को पृथ्वी से खत्म करेंगे और नए युग की शुरुआत करेंगे।