कामाख्या मंदिर के स्थापना कैसे हुई 

राजा दक्ष के यज्ञ दौरन जब शिव को अपमानित किया गया तो ये अपमान दक्ष पुत्री यानि माता सती अपने पति शिव के विरुद्ध बर्दास्त नहीं कर पायी उन्होंने ने अपने आप को उसी यज्ञ में आत्म तयाग कर दिया। जब भगवन शिव ने माता सती की मृत्यु होते देखा तो वो क्रोध से तिलमिला उठे। और अपनी पत्नी के मृत्य देह को उठाकर संघार नृत्य करने लगे। भगवन शिव के इस संघारक रूप से सभी देवी देवता भयभीत हो उठे।तब भगवन विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से  एक एक कर माँ सती के अंगो को अलग कर दिया। मन जाता की इस दौरान सती के सरीर के 52 हिस्से अलग अलग जगह गिरे।  इन्ही 52हिस्सों को माता का शक्तिपीठ कहा जाता है। जिसमे की माता की योनि कामाख्या में गिरी और उसे कामाख्या मंदिर का नाम दिया गया। 

कामाख्या  मंदिर के 8 रहसय 

1. तंत्र साधना और अघोरियों  के गढ़ मने जाने वाली कामख्या मंदिर असम के दिसपुर में स्थित है इस मंदिर को 51      सप्तपीठो में से मन जाता है।  काम्खया मंदिर सभी सप्तपीठो का महा पीठ है। यहाँ आपको किसी देवी की मूर्ति      देखने नहीं मिलेग।  यहाँ पर एक कुंड सा बना हुआ है जो हमेसा फूलो से ढाका रहता है और उससे हमे प्राकृतिक जल निकलता रहता है। 

2.पुरे भारत में रजस्वरा  यानि मासिक धर्म को अशुद्ध मन जाता है।  लड़कियों को इस दौरान अक्सर अक्षूत समझा  जाता है लेकिन कामाख्या में ऐसा नहीं है  हर साल यहाँ अम्बु वाचक विल्ली के  दौरान पास में स्थित प्रामुत्र का पानी 3 दिन के लिए लाल हो जाता है।पानी का ये लाल रंग कामख्या देवी के मासिक  धर्म के कारण होता ह।  फिर तीन दिन बाद श्रद्धालु के मंदिर काफी भीड़ उमड़ती है  । 

 3. इस मंदिर में दिया जाने वाला प्रसाद भी दूसरे शक्तिपीठो से बिलकुल अलग होता ह।  इस  मंदिर में प्रसाद के     रूप में लाल रंग का गीला कपडा दिया जाता है। कहा जाता है जब माँ को  3 दिन का रजस्वला होता है तो     सफ़ेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है 3 दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते है तो वो       वस्त्र माता के रक्त से लाल रंग से भीगा होता है।  इस कपडे को अम्भुबाची वस्त्र कहते है जो भक्तो को प्रसाद         के  रूप में दिया जाता है।

4.  यहाँ पर कोई भी मूर्ति स्थापित नहीं है यहाँ पर  शंकर चट्टान के बीच  बिना विभाजन देवी के योनि को दर्शाता ह एक प्राकृतिक झरन के कारण ये हमेशा गिला रहता है।  इस झारन के जाल को काफी प्रभावसाली ,सक्तिसाली मन जाता है। मन जाता है इस जाल के नियमित सेवन से आप हर बीमारी से निजात पा सकते है। 


 

5. भैसे और बकरी की बलि यहाँ पर आम है लेकिन यहाँ किसी मादा जानवर की बलि यहाँ नहीं दी जाती इसके    साथ ही मान्यता है की माँ को प्रस्सन करने के लिए कन्या पूजन और भंडारा करा सकते है जिससे आपकी हर        मनोकामना पूरी हो जाएगी।

6.कामाख्या मंदिर से कुछ ही दुरी पर उमानंदी भैरव का मंदिर उमानंदी ही इस शक्ति पीठ के भैरव है।  यह मंदिर प्रामुत्र नदी के बिच टापू पर स्थित ह। मान्यता है इनके दरसन के बिना कामाख्या मंदिर की यता अधूरी मणि    जाती है।  इस टापू को मध्यांचल पर्वत के नाम से भी जाना जाता है क्युकी यही समधिस्त महा शिव को कामदेव  ने काम बाढ़ मार कर आहत किया था और शमाधिस्त जागृत होने पर शिव ने अपने तीसरे नेत्र से उन्हें भसम  किया था। 

7.इस जगह को तंत्र साधना और  सबसे महत्वपुर्ण मन जाता है। यह पर साधुओ और अघोरियों का ताता लगा   रहता   है। यहाँ पर कला जादू भी किया जाता है अगर कोई वयक्ति काला जादू से ग्रषित है तो यहाँ वो इसमस्या से निजात पा सकता है।

8.कामाख्या के तांत्रिक और साधु चमत्कार करने में सक्षंम होते है। कई लोग धन विवाह और दूसरी इछाओ की  पूर्ति    के लिए कामाख्या के तीर्थ यात्रा  पर जाते है। कहते है यहाँ के तांत्रिक बुरी सक्तियो को दूर करने में समर्थ      होते है हलाकि वो अपनी शक्तियों का इस्तेमाल काफी सोच समझ कर करते है |